5/22/19

Poetry | Shikhar Goel

१.
सुनो- सुनो कहानी अब तुम,
इंग्लैंड में एक बच्चा था
डरा-डरा सा, शर्मिला, और
चुप-चाप सा रहता था.

धीरे धीरे बड़ा हुआ वो,
पांचवे जॉर्ज  के लिबरल राज में,
गलती से पर,
मार्क्स, एंगल्स, एलीअट, लेनिन,
पड़ गए उसके हाथ में.

फिजिक्स गया था पढ़ने Cambridge
पर गुरुत्वाकर्षण न बाँध सका
मजदूर, कामगारों की व्यथा के आगे,
उसे पूँजी और मुनाफ़े के चक्कर में
कोई न उलझा सका.

क्रांति-क्रांति पढ़ता-पढ़ता
क्रांति-क्रांति हो गया
पार्टी की लेकर सदस्यता
कभी डरा हुआ सा चुप चुप लड़का
कामरेड फिलिप स्प्रैट हो गया!
२.
क्लीमंस दत्त ने आकर एक दिन
बोला उसके कान में
“पार्टी तुमको भेज रही है
धरती-ए-हिंदुस्तान में.”

एक रूसी कामरेड ने आकर
उसको उसका मक़सद बताया
“पर्चे बाटों, लेख लिखो तुम,
गोलबंद  करो हर हाथ को,
और जाओ हिंदुस्तान से कह दो,
अब वो भी चीन के कौमिनटांग के रास्ते चले.”

सन 26 की पूस में,
भूमध्य सागर के तट-तट चला कैसर-ए-हिन्द
थका-थका सा पहुंचा अरब सागर के ज्वार में,
बंबई के बंदरगाहों में बांधे गए लंगर,
साल के आख़िरी दिसम्बर को,
पच्चीस साल का कामरेड,दाख़िल हुआ  देश के अंदर.

सरकार से कहकर,
“बस जी बेचूंगा किताबें, करूँगा शोध”
कामरेड लग गया असली काम पर
मज़दूर संगठन, कॉलेज के बच्चे
रिपोर्टर- वकील- नेता सब
पास में रहने लग गए अब.
३.
“बेवकूफ़ है वो, समझते है जो,
बिना हिंसा के ही बात बन जाएगी,
हुंकार भरेंगे जब मज़दूर-ओ-किसान,
साम्राज्यवादी सत्ता फूंको से दह जाएगी.”

हुआ जो चीन में, वो यहाँ भी है मुमकिन,
“ऐ ख़ाक-नशीनो उठ बैठो, वो वक़्त क़रीब आ पहुँचा है
जब तख़्त गिराए जाएँगे, जब ताज उछाले जाएँगे
कटते भी चलो, बढ़ते भी चलो, बाज़ू भी बहुत हैं, सर भी बहुत
चलते भी चलो कि अब डेरे मंज़िल ही पे डाले जाएँगे”- (फैज़ अहमद फैज़)

कामरेड की ऐसी बातें जब छपी अख़बार में
बंबई से लंदन तक, फ्यूज़ उड़ गए सरकार के
हड़बड़ी में रेड पड़ गयी, राजद्रोह की धारा लग गयी
पुलिस घसीट कर ले गयी,
आर्थर रोड वाली ससुराल में.
४.
बंबई में बैठी कचैरी
और इल्ज़ामों के दौर चले
सरकारी वकील एक स्वर में बोले
“नहीं इनको राजा से प्रेम मीलॉर्ड,
दिल में इनके केवल नफ़रत है.
भड़काऊ भाषण, ये लेख-वेख सब
अजी, राजद्रोह की हरक़त है”

स्प्रैट अपने बचाव में बोला-
“द्वेष फैलाना मक़सद नहीं
न राजा से नफ़रत है
शोध करता हूँ लेबर पर मैं
झूठे है राजद्रोह के केसिस,
My lord, this pamphlet is only my thesis.”

जिन्नाह, तलयार खान, और बाबा साहिब
बचाव पक्ष से बोले
“मीलॉर्ड, सरकारी वकील बहका रहें है
इतने बड़े आलेख से, बस दो-एक हिस्से सुना रहें है.
तिलक के समय पर जज साहब ने
पूरे भाषण की शर्त लगाई थी
न इस बार इन मूर्खों को आई समझ बात,
न उस बार ही आई थी”
“पूंजीवाद और साम्राज्यवाद पर लेख है ये
राजा से नफ़रत का कोई प्रमाण नहीं
इसको पढ़ कर लोग भड़के,
इस युक्ति में जान नहीं”

आठ-एक की बहुमत से 
जूरी ने कामरेड को निर्दोष किया
जज ने भरी हामी
और बा-इज्ज़त बरी किया.
कोर्ट रूम में गूंजी तालियाँ
सबने सबको congratulate किया!
५.
कामरेड इस के बाद,
लगा रहा अपने काम पर
गया जेल वो अगली बार
साज़िश-ए-मेरठ के इलज़ाम पर.
कहानी वो भी अच्छी है,
पर कभी और के लिए रखी है.

बूढ़ा हुआ जब फिलिप
वामपंथ से मन-भर गया
मरने से पहले सुनते है, कामरेड
एक लिबरल लेखक बन गया.
Phillip Spratt was charged with Sedition in the year 1927 by the British colonial government in India, for writing a pamphlet ‘India and China’. This is a poetic re-telling of the trials of Emperor vs. Phillip Spratt. At that time, the trial had garnered a lot of public attention. Newspapers report that courtrooms were filled with people during the hearings. Some of the leading Indian lawyer-politicians such as Mohd. Ali Jinnah, B.R. Ambedkar, Talyarkhan among others had appeared in the defense of the 25-year old comrade.  

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