5/13/19

TSC Philosophy | हिन्दू : एक गैर राजनैतिक परिभाषा | Part 5 | Tarun Bisht

 The Buddha as Mendicant: Abanindranath Tagore
from "Myths of the Hindus & Buddhists" (1914) via Wikimedia Commons


भारतीय सामाजिक व्यवस्था में पूर्व से व्याप्त वर्णवादी  व्यवस्था  के खिलाफ श्रण  आंदोलन के तौर पर भारतीय उपमहाद्वीप में नए विचारो का उदय हुआ। गैर वैदिक दर्शनों के इस समूह ने भारतीय उपमहाद्वीप में  श्र आंदोलन की नींव रखी जिसमें जैन धर्मानुयाई, बौद्ध, चार्वाक(Lokayat),आजीविका,अजनाना इत्यादि ने  गोत्र गठबंधन व वेदों का विरोध किया जो वर्णवादी  व्यवस्था का मुख्य कारण बनी हुई थी । फलतः वैदिक गठबंधन ने इन्हे नास्तिक घोषित कर दिया। ये वही समय था जब गैर वैदिक राज्यों में पुराने दर्शनों का पुनः विकास होने लगा । वैदिक गठबंधन के अलावा भी पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में अनेको आश्रम विद्यमान थे, जो वेदो को एक दार्शनिक गठबंधन न मान कर सिर्फ एक सैनिक गठबंधन  के तौर पर ही देखते थे । इन आश्रम समूहों ने सामूहिक रूप से वैदिक रीति-रिवाजों   व वैदिक गोत्रो(आश्रमो) को उच्च श्रेणी का मानने से इंकार कर दिया । वहीँ  गोत्र गठबन्दन ने भी त्रिमूर्ति के अलावा  किसी भी दर्शन को मानने से इंकार कर दिया व वेदों को ही सम्पूर्ण ज्ञान घोषित कर दिया- ये वेदों में रूढ़िवाद का दौर था । वैसे ये कोई नई बात नहीं थी। सभी आश्रम अपने  से अलग दूसरे आश्रमों को व अपने अलावा बाकी आश्रमों को नास्तिक ही कहते व मानते रहे है। आश्रमों के इस गठबंधन के खिलाफ अलग - अलग आश्रमो का एकजुट होना शरू हो गया था ।संस्कृति अभी भी गोत्र के आधार पर अनुसरण की जाती थी।अलग अलग दर्शनों के लोगो के लिए अलग अलग न्याय था जो उन के दर्शन को आधार बना कर बने थे।  


राष्ट्रों में नए ताकतवर राष्ट्र का दूसरे राष्ट्रों से ताकत के जोर पर पैसे वसूलना पुरानी लूटपाट की नीतियों से बेहतर नीति थी । ऐसे में कर वसूलने वाला शक्तिशाली राज्य अधीन राष्ट्र को आवश्यकता पड़ने पर दूसरे शक्तिशाली राज्यों के हमले से बचाता भी था। वहीँ लूटपाट की पुरानी नीति से जानमाल की काफी हानि होती थी। अलग अलग कबीले सिर्फ दर्शन के आधार पर ही नहीं अलग अलग वर्णो के आधार पर भी बटे थे।  हर क़बीला अपने आतंरिक मामलो में किसी बाहरी आदमी को बर्दाश्त नहीं करता था। कबीला अभी भी एक परिवार ही था जिस में सभी के लिए सारे अधिकार सुरक्षित थे।  अपनी जनसंख्या बढ़ा  कर ही बड़ा हुआ जा सकता था या गुलाम रख कर। ये गुलाम प्रथा आर्यो में देखी गई, इस लिए बड़े राज्य की परिकल्पना करने को एक नई आर्थिक प्रशासनिक व न्यायिक संरचना की जरुरत थी। 

श्रण  आंदोलन का आगमन नए दर्शनों के साथ हुआ इनमें बौद्ध प्रमुख है। 

बौद्ध दर्शन भारतीय श्रण परंपरा का एक प्रमुख दर्शन है जिसकी नीव गौतम  बुद्ध(563 ईसा पूर्व 483 ईसा पूर्व) ने रखी। उनका जन्म शाक्य गणराज के एक राजा शुद्धोदन के घर में हुआ । उनका बाल्यकाल में नाम सिद्दार्थ था जो बाद में बुद्ध के नाम से जगविख्यात हुए। सिद्दार्थ विवाहोपरांत  अपने इकलौते नवजात शिशु राहुल और पत्नी यशोधरा को त्याग कर संसार को जरा,मरण ,दुखो से मुक्ति दिलाने के मार्ग की तलाश एवं सत्य दिव्य ज्ञान खोज में रात में राजपाट छोड़ जंगल चले गए। वर्षो की कठोर साधना के  पश्चात बुद्ध को गया में बोधि वृक्ष के तले  ज्ञान की प्राप्ति हुई  और वो गौतम से बुद्ध बन गए। बौद्ध धर्म अन्य अद्वैत विचारो की तरह अनिश्वरवाद को मानता है और पूर्व जन्म व मनुष्य व अन्य जीवो को प्रकृति चक्र का हिस्सा मानता  है।

बुद्ध ने कर्मो को सुख दुःख का कारण बताया । उन्होंने आत्मा का स्थान मन को दिया व वेदों का पूर्ण रूप से विरोध किया । उन्होंने प्रकृति चक्र को सृष्टि  का जनक बताया व पूर्व जन्म में विश्वास जताया साथ ही  मूर्ति पूजा का खुल कर खंडन किया।

बुद्ध के अनुसार - मै हमेशा मै नहीं रहता क्योकि मै हर पल वैचारिक तौर पर बदलता हूँ ।

जैन दर्शन का मूल सूत्र है जिस ने खुद को जीत लिया वो जैन कहलाता है । ये लोग शिक्षको की पूजा करते है । जैन ईश्वरी मत में ‘ईश्वर’ कर्ता नही, भोगता नही, वो तो जो है सो है। अन्य अद्वैत विचारो की तरह जैन पंथी भी अनीश्वरवाद को मानते है और पूर्व जन्म व मनुष्य व अन्य जीवो को प्रकृति चक्र का हिस्सा मानते हैं। 

जैन ईश्वरी मत के संस्थापक तीर्थकर महावीर का जन्म 599 ईसा पूर्व को वैशाली गणतंत्र के शाक्य राजा सिद्दार्थ के घर हुआ। वे 24 वे व अंतिम तीर्थकर भगवान महावीर कहलाए व महावीर ने तीर्थकरो के धर्म तथा परंपरा को सुव्यवस्थित रूप दिए। उन्होंने धर्म का मूल आधार अहिंसा को बनाया। उन्होंने अहिंसा, अनेकतावाद, स्याद्वाद,अपरिग्रह और आत्म स्वातंत्र्य के सिद्धांत दिये। उन्होंने शिक्षा दी  कि मन वचन और कर्म से हिंसा न करना ही अहिंसा है । 63 श्लाका पुरुष व चौबीस तीर्थकर के साथ यह दुनिया के सब से पुराने दर्शनों  में से एक है । बाद में जैनी साधु दो गुटों में बँट गए ।  ये स्वेताम्बर और दिगम्बर कहलाए।  जिन में स्वेताम्बर साधु श्वेत कपडे पहनते है और दिगम्बर साधु कपडे नहीं पहनते हैं। 

श्रण दर्शन का एक मत आजीविका भी है ।आज इस का कोई ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है । पर बौद्ध ,जैन और वैष्णव ग्रंथो में कई जगह इनका उल्लेख मिलता है ।इस आधार पर देखा जाए तो इस दर्शन के लोग भाग्यवादी थे और इनका मानना था जो कुछ विश्व में होता है वो पहले से ही तय है ।ये आत्मा व पुनर्जन्म पर विश्वास रखते थे उनका मानना था पृथ्वी, पानी, हवा, सुख, दुःख, जीवन मुख्य कड़िया हैं। जिनमे आखरी तीन कड़ियों को न बनाया जा सकता है न ख़त्म किया जा सकता है ।कुछ इतिहासकारो के अनुसार ये शुरुआती जैन दर्शन के काफी समीप थे या उसी से टूट कर बने । ये आत्मा को अजर अमर मानते थे। उनका मानना था कि आत्मा कपड़ो की तरह शरीर बदलती है व खुद अजर अमर है । ये लोग भी शिक्षक को पूजते थे ।तमिल साहित्य के अनुसार ये लोग अहिंसा का पालन करते थे और शाकाहारी जीवन यापन करते थे ।इन्हे बौद्ध ,जैन और ब्राह्मणवादी अनैतिक,असभ्य और कामी मानते थे।


अजनाना मूल रूप से सन्यासियों का दर्शन है। अजनाना भी श्रण  आंदोलन के एक प्रमुख दर्शन में से एक है जिसकी अपनी कोई मूल पांडुलिपियां उपलब्ध नहीं है ,परन्तु बौद्ध ,जैन व ब्राह्मणिक ग्रंथो में इस का उल्लेख मिलता है। अन्य अद्वैत विचारो की तरह अनिश्वरवाद को मानता है और पूर्व जन्म व मनुष्य व अन्य जीवो को प्रकृति चक्र का हिस्सा मानता है। 
इनका मानना था कि दुनिया में रह कर इसे समझना संभव नहीं है । ये लोग आम तौर पर जंगलो में भटकते हुए पाए जाते थे। ये लोग सन्यासी थे और अजनाना पंथी साधुओ के आश्रम का भी जिक्र है । ये सन्यासी एकांतवादी,स्वतंत्र चित्त व प्रयोगात्मक थे। इनके आश्रम वैदिक ब्राह्मणिक आश्रमों से मिलते थे। ये मानते थे कि किसी एक द्वारा सम्पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति संभव नहीं है और कोई भी व्याख्यान ज्ञान नहीं माना जा सकता। ये वेदों की सत्ता के पूर्ण रूप से विरोधी थे।  उन्होंने वेद व्यवस्था को ज्ञान का माध्यम तो माना पर साथ ही वेदों को ज्ञान का एक छोटा अंश बता उसको सम्पूर्ण ज्ञान मानने से इंकार भी किया । ये अद्वैत  साधुओ की तरह प्रतीत होते है ।इन्हे सभी भारतीय ईश्वरी मतों व वैज्ञानिक खोजो के जनक के तौर पर भी माना जा सकता है ।अजनाना सन्यासियों का प्रभाव बौद्ध ,जैन अन्य श्रण  विचारधाराओ में दिखता है।


   

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