4/21/19

TSC Philosophy | हिन्दू : एक गैर राजनैतिक परिभाषा | Part 3 | Tarun Bisht

Vedic Goddess Usha, PC: Pinterest



आश्रम से प्रारंभिक गोत्र गठबंधन तक व त्रिमूर्ति की स्थापना

वेदों को एक सैनिक गठबंधन के साहित्य के तौर पर देख सकते है । काफी इतिहासकार वेदों को हड़प्पा के अंत से भी जोड़ते हैं । ऋग्वेद की 53वि स्तुति के 8वे श्लोक  में वक्र के 99  गण ढहने का भी जिक्र है जिसे ज्यादातर  इतिहासकार हड्डपा के नगरों से जोड़ते है ।

 ऋग्वेद में सात आश्रमों का गठबंधन बताया गया है। इनमें आर्य ही नहीं गैर आर्य आश्रम भी शामिल थे। वेदों, उपनिषद और पुराणों को देखा जाए तो एक कहानी मिलती है जो कहती है कि सिंधु और सरस्वती के बीच तीन आर्य आश्रम थे जिन में दो गुट बन गए: एक विश्वामित्र,और  जमदग्नि का और दूसरा वशिष्ठ का जिसका मुख्य कारण गैर आर्यो से सैनिक गुटबंदी था।

विश्वामित्र ने अपने नाती परशुराम को एकेश्वरवादियों (शिवा) के आश्रम में पढ़ाई के लिए भेजा । इस बीच आर्यव्रत में वशिष्ठ और विश्वामित्र के बीच युद्ध हुआ जिसमें विश्वामित्र की विजय हुई पर आर्यव्रत कमजोर पड़ गया क्यूंकि आपसी गृहयुद्ध ने काफी हानि कर दी थी। इसी समय परशुराम अपनी शिक्षा पूरी कर आर्यव्रत लौटे। लौटते ही आर्यव्रत से दास प्रथा ख़त्म कर गैर आर्यो को आर्यो में सम्मलित कर दिया । उन्हें तीन आश्रमों की सत्ता हासिल हुई व उन्होंने दो अंगिरस के शिष्यों गौतम और भारद्वाज जो एकेश्वरवादी (शैविक) थे  व दो प्रकृतिवादीओ अत्रि और कश्यप के आश्रमों से भी घटबन्धन किआ और उत्तर पश्चिम भारतीय उपमहा दीप में इस गठबंधन ने एक महान राष्ट्र की स्थापना की व परशुराम ने भरत का राज्याभिषेक किया । ये राष्ट्र भारतवर्ष पश्चिम उत्तर  में  सिंध तक (अभी के पाकिस्तान जिसे सात नदिओं वाले देश के तौर पर कहा गया है) था; दक्षिण में इस की  सीमा  वैदिक साहित्य में अनूप नगरी ( लोथल) तक बताई गई है (नर्मदा नदी की शुरआत) ।

 शुरुआती गठबंधन का मुख्य कारण एक प्रबल शक्तिशाली दुश्मन साहस्त्रार्जुन था पर तीन दर्शनों व सात आश्रमों का ये समूह प्रथम सात गोत्रो के रूप में प्रचलित हुआ । दक्षिण में दक्षिण राज्य व पूर्व में तक्षिला गणराज्य के अलावा  भी उनके समक्ष शक्तिया मैजूद थी जिन से सीधा टकराव संभव नहीं था, इन सात आश्रमों के लिए भी ।

आगे चल कर ऋग वेद की अंतिम स्तुतिओ में एक निर्णायक युद्ध में जब अश्विन कुमारो ने नेतृत्व संभाला तो आयुर्वेद व अपने चिकित्साए ज्ञान की वजह से हारी सेना को फिर से खड़ा कर जीत दिलवाई ।  इसी जीत की वजह से दूसरे वेद अर्थवेद में आर्युवेद का ज्ञान संरक्षित करने की वजह बनी  होगी व इस चिकित्सा पद्वति व औषधि ज्ञान को सभी के लिए संरक्षित किया गया ।

औषधि व चिकित्सा ज्ञान के अलावा सभी आश्रमों में दूसरे दर्शनों को पढ़ाना भी शामिल किया गया जिस से सातों आश्रमों में सामंजस्य बनाए रखा जा सके व आपसी एकता बनी रह सके ।  आपस के प्रतीक चिह्न के रूप में आश्रमों व मंदिरो में भी तीनो दर्शनों के चिह्न रूप में त्रिमूर्ति की स्थापना की गईं। युद्ध के बाद यज्ञ किया जाता था जिसमें युद्ध का मुख्य सेना नायक लूट के धन व पशुओं का बँटवारा सातो आश्रमों में करता था। यज्ञ के उपरांत सेना नायको की स्तुति गायी जाती थी जो आम तौर पर अतिश्योक्ति होती थी । आगे चल कर वीरगाथा काल में भी राज कवियों द्वारा इस तरह की अतिश्योक्ति साहित्य में पायी जाती रही है।

 ऋग्वेद में देवी उषा का भी जिक्र है जो कि  सूर्य पुत्री बताई गई हैं। उनका विवाह अलग अलग वेदों की स्तुतिओ में अलग अलग सेनानायको से दिखाया गया है।  ऋग्वेद की 119 वि स्तुति के पाचवें श्लोक में देवी उषा ने दोनों अश्विन कुमारों से विवाह किया। शायद देवी उषा किसी मातृ- प्रधान समाज की प्रतिनिधित्व करती थीं जिनका वंश शायद स्त्री पक्ष से माना जाता रहा होगा व स्वयंवर या पूर्ण स्वतंत्रता  से राजकुमारी अपने पति का चुनाव करती थी। जरूर ये स्वम्वर या शादी शक्तिमूलक गठबंधन पर केंद्रित थी । देवी उषा का पति सूर्य कहलाता था जैसा की ऋग्वेद  की 123 वि स्तुति के 10 वे श्लोक से पता चलता है । किसी भी आश्रम के नेतृत्व-कर्ता के लिए देवी उषा को पत्नी रूप से प्राप्त करना सामरिक दृष्टि से उसे अति शक्तिशाली बना देता होगा। एक प्रमुख ग्रन्थ महाभारत में द्रोपदी का भी उल्लेख मिला है व भारत के उत्तराखंड के जोनसर बावर व नेपाल में  पहले इस तरह की भाइयों से शादी की प्रथाएं  मौजूद रही है जिसमें एक स्त्री से सभी भाइयों  का विवाह होता था।


यजुर्वेद में विष्णु का इस गठबंधन में आगमन दिखाया गया है । विष्णु का उल्लेख सबसे पहले ऋग्वेद की 22वी स्तुति के 16 वे श्लोक [1] में लिया गया है  यहाँ पर उन्हें इंद्र के मित्र के तौर पर दिखाया गया है । ऋगवेद की 88 स्तुति के दूसरे श्लोक में विष्णु को सावले वर्ण का बोला गया व वेदों में विष्णु का आना यजुर्वेद के पञ्चमोध्यायः के 28 वे शलोके में हिरण्यगर्भा  अनुष्ठान के माध्यम से दिखाया गया है । बाद में महाभारत के युद्ध में विष्णु (कृष्ण) को इंद्र को हरा इंद्र पूजा का अंत करते दिखाया गया है शायद इसी जगह वैष्णवों द्वारा आर्य जातिओ को अपने अंदर मिला लिया गया था।

उत्तर भारतीय सात गोत्रो से अलग उन्हें सांवले वर्ण का कहा गया मगर उत्तर भारत के इस गठबंधन ने दक्षिण के श्याम वर्ण के दुश्मन राष्ट्र के लोगो के प्रति एक नफरत का भाव फैलाया जिस के प्रमाण के तौर पर हमें वाल्मिकी रामायण मिलती है। राखीगड़ी की हड़प्पा सभ्यता की 2018 एंथ्रोपोलॉजी रिपोर्ट भी इस बात को सत्यापित करती है कि उत्तरपश्चिमी भारतीय उपमहाद्वीप में गोरे वर्ण के लोग निवास करते थे व बाकि भारतीय उपमहाद्वीप में काले व सावले वर्ण के लोग भी मौजूद थे । नए वैदिक गठबंधन ने पुराने गणराज्यों की जगह ले ली पर स्थानीय तौर पर ये सिर्फ एक सैनिक गठबंधन ही था जो अपनी लगातार जीत व लूटपाट की वजह से शक्तिशाली होता जा रहा था ।


[1] Rig Veda, tr. by Ralph T.H. Griffith ऋग्वेदे की २२वी स्तुति के 16 वे श्लोक https://www.sacred-texts.com/hin/rigveda/rv01022.htm
Rigved - ऋग्वेद संहिता हिंदी by Sanatan ऋग्वेदे की २२वी स्तुति के 16 वे श्लोक https://archive.org/details/RigvedInHindi/page/n23

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