5/3/19

TSC Philosophy | हिन्दू : एक गैर राजनैतिक परिभाषा | Part 4 | Tarun Bisht

Unicorn Seal from Harappa Civilisation, PC: Harappa.com

समाज व शुरुआती समाज विभाजन     

शुरुआती समाज कबीलाई था पर भारत वर्ष की स्थापना के बाद गोत्र गठबंधन सिर्फ आर्थिक रूप से मजबूत नहीं हुए बल्कि नए शहर व नगरों की भी नीव पड़ी ।आश्रमों में तीनों दर्शन एक साथ पढ़े जाने की वजह से शिक्षा व ज्ञान के क्षेत्र में बहुत उन्नति हुई पर आरम्भिक शिक्षा अभी भी मंदिरो के माध्यम से ही दी जाती थी जिसका आधार गोत्र या आश्रम ही था पर मंदिरो का काम शिक्षा ही नहीं न्याय व्यवस्था बनाए रखना भी था। मंदिर के अधिपति आश्रमों द्वारा उच्च शिक्षा प्राप्त किये लोग ही होते थे जो आश्रमों द्वारा सीधे निर्देश प्राप्त करते थे। इसी लिए जब किसी अन्य राष्ट्र को जीता जाता तो सब से पहले उन के मंदिरो के प्रतीक चिह्नों को नष्ट किया जाता था। राज विस्तार का एक ही माध्यम था कि दुश्मन कबीले के सभी क्षत्रियो को मार औरतें और बच्चो को अपने गोत्र में शामिल कर दो ।इसी के माध्यम से पहले परशुराम ने कई कुलो को अपने अंदर मिलाया। फिर महाभारत में कृष्ण ने भी इसी परंपरा का अनुसरण किया । आम तौर पर राजनैतिक, सामाजिक व आर्थिक महत्व के पदों पर आश्रमों द्वारा उच्च शिक्षा प्राप्त किये शिक्षित वर्गों को ही रखा जाता था जिस से शुरुआती समाज मुख्य रूप से दो वर्गों में बँट गया : आश्रम द्वारा उच्च शिक्षा प्राप्त वर्ग व आम लोग जिन में किसान पशुपालक व श्रमिक वर्ग शामिल था। पर शिक्षा का अधिकार किसी खास वर्ग के लिए सुरक्षित नहीं था। क्यों कि कबीले अभी भी एक परिवार थे जहा सब समान थे। कबीले का कोई भी इंसान कोई भी सामाजिक वर्ग अपना सकता था या नए सामाजिक वर्ग में पहुँच सकता था। इन के अलावा एक और वर्ग भी था जिसमें वेश्या व बंजारे थे। इन लोगो का कोई स्थाई ठिकाना नहीं था ये लोग भटकते रहते थे व छुट-पुट  व्यापर व तमाशा दिखा अपना जीवन यापन करते थे। इन्हे दर्शन रहित कहा जाता था। ये आम तौर पर किसी भी कबीले का हिस्सा नहीं थे।

वर्ण व्यवस्था

भारत वर्ष की वैष्णवों के साथ गोत्र गठबंधन की मदद से एक मजबूत सैनिक गठबंधन की उत्पत्ति हुई जिस ने ज्ञान विज्ञानं व दर्शन के काफी सवालों के हल दिए परन्तु ज्ञान के साथ क्षेत्रीय व जातीय घमंड आना स्वभाविक  था। यहाँ रंग के आधार पर भेद भाव शुरू हुआ; रंग व  नाक-नक़्श भेद भाव का एक मजबूत कारण बना व गठबंधन  राष्ट्रों ने काले वर्ण के लोगों को ज्ञान देने पर अंकुश लगा दिए । पर ये प्रथा वैष्णवों में व आर्य में ही ज्यादा प्रचलित दिखती है। शैविक  व ब्रह्मा दर्शन दक्षिण गण राज्य से दर्शन के आधार पर जुड़े हुए थे व इस रंग भेद नीति की आलोचना करते ही दिखते थे ऐसे में वाल्मीकि रामायण एक व्यंगात्मक साहित्य के तौर पर सामने आया जिसमें उन्होंने दिखाया कि सिर्फ काली लड़की के विवाह के आमंत्रण पर लक्ष्मण इतना क्रोधित हुआ कि  उस ने रावण की बहन के नाक कान काट दिए व दूसरी तरफ कट्टरपन से ग्रसित हो चुके वेदों के चेहरे से नकाब हटा के दिखाया कि ये सिर्फ एक सैनिक गठबंधन है जिसमें कोई स्वतंत्र रूप से अपने दर्शनों के प्रति ईमानदार नहीं। बाद में अलबरूनी ने भी वर्ण व्यस्था का उल्लेख किया है जिस के अनुसार भारतीय उपमहाद्वीप 8 वर्णो में विभाजित किया गया है।

1. देव - जो उत्तर भारत में रहते थे व गोरे जिनके साथ दानवो की लड़ाई कभी ख़त्म नहीं होती।

2.  दानव - जो दक्षिण भारतीय उपमहाद्वीप में निवास करने वाले काले वर्ण के लोग थे ।

3. गन्धर्व - गन्धर्व को संगीत वादक व संगीतज्ञ बोला गया है, जो देवताओ के आगमन से पहले संगीत बजाते है और उन के साथ रहने वाली युवतियां अप्सरा (निम्फस) कहलाती थी।

4. यक्ष- यक्ष को देवताओं के धन की रक्षा करना वाला बोला गया है ।

5.  राक्षस - इन्हे विकृत व बदसूरत काले वर्ण के लोग बोला गया है।

6.  किन्नर- जिनका धड़ इंसान का व शरीर घोड़े का कहा गया है ( शायद इंडो ग्रीक के लिए )

7. नागा - साप जैसे चेहरे  वाले लोगो के लिए बोला गया (शयद इनका तात्पर्य नार्थ ईस्ट रीजन से था )

8. विद्याधर - राक्षस / जादूगर जो एक खास तरह के जादू का इस्तेमाल करते है जो जरुरी नहीं है कि स्थाई समाधान दे।

मनु के अनुसार मिश्रित वर्णो को मिला संख्या लगभग 60 थी अर्थात मौर्य काल की तुलना में प्राय: पांच गुनी थी ।

 

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