3/20/18

Obituary | Kedarnath Singh | Anil Pushker

Source: livehindustan.com

कवि केदारनाथ सिंह: विजातीय द्रव्यों से लड़ती हुई कविताहर्फ-हर्फ, जहरीले विकारों का कीमियागर
 ‘प्रकृति के नियमों के विरुद्ध आचरण और जीवनशैली खिलाफ’जब इंसान,समाज,संस्कृति,सभ्यता सांस लेते हैं तो दुनिया में अनेकों बीमारियाँ पैदा होती हैं. हमारे दिलो-दिमाग पर ऐसे आचरण और जीवनशैली व विषाक्त संस्कारों का बुरा असर पड़ता है.तंत्रिका-तन्त्र को इन रोगों और कमजोरियों में जीने की कई मर्तबा आदत सी पड़ जाती है.दिमाग जो कल्पना करता है,स्वप्न देखता है,विचार पैदा करता है,योजनाबद्ध तरीके से जीने के बुनियादी सुझाव,सहूलियतें,सोचने की ताकत देता है.दूषितऔर विकृत विजातीय परम्पराएं,मूल्य, विचार,तहजीब के गर्भगृह से जब ये दूषित रस रिस-रिसकर हमारी चेतना पर हमला करते हैं तब ऐसे में कवि केदारनाथ सिंह की कविताएँ विजातीय द्रव्य से लडती हुई हर्फ-हर्फ बुनकर सा और कविता कीमिया बनकर उभरती है.ये कविताएँ हमें तंत्रिकातन्त्र को बचाने के उपाय की कीमियागार साबित होती हैं.सभ्यताओं में फैली विकृतियों से लड़ने की ताकत पैदा करती हैं..

अगर धीरे चलो/वह तुम्हे छू लेगी/दौड़ो तो छूट जाएगी नदी/अगर ले लो साथ/वह चलती चली जाएगी कहीं भी/वह चुपके से रच लेगी/एक समूची दुनिया/एक छोटे से घोंघे में सच्चाई यह है/कि तुम कहीं भी रहो/तुम्हें वर्ष के सब से कठिन दिनों में भी/प्यार करती है एक नदी.
कभी सुनना/जब सारा शहर सो जाए/तो किवाड़ों पर कान लगा/धीरे-धीरे सुनना/कहीं आसपास एक मादा घड़ियाल की कराह की तरह/सुनाई देगी नदी!
देश-दुनिया में बसी चेतना की सेल्स हमेशा एक सी नहीं रहती. हर लम्हा टूटती रहती हैं. कविता की अमूर्त कला की कारीगरी में फकीरी रूमानी जिन्दादिली का कारीगर होने का जो साहस और पीड़ा है वही केदार के भीतर प्रकृति को शक्ति के साथला कर खड़ा कर देती है.प्रकृति जो हमेशा ही इन बीमार सेल्स को नष्ट करती आई है और नई जिन्दगी देने वाली सेल्स को पैदा करती रही है. केदार जी की रचनाएँ ठीक यही काम करती हैं. जिस तरह अमूर्त कला में माहिर कलाकार कान्दिन्सकी, मोंद्रियान, देलोन, मालेविच ने अपनी कोशिशों से दुनिया में नये जीवन के रंग भरे . उनकी आयताकार छवियाँ भले ही किसी एक रूप में नहीं ढली हों. फिर भी उनमें एक खासा सम्मोहन है.इनका कोई निश्चितअमुदायऔर सम्प्रदाय से नाता नहीं, किसी एक विचारधारा से बंधी नहीं. ना ही किसी एक ख़ास तरह के आन्दोलन को लेकर चली. जिस तरह एक वैज्ञानिक होकर कान्दिन्सकी ने कलाकार  के बतौर मकबूलियत हासिल की वहआश्चर्यचकित करती है.

बिलकुल इसी रंग--साज़ में ढली कविताओं के अद्भुत कारीगर कवि केदार अमूर्त में मूर्त, यथार्थ और रहस्य,रूमानियत के संग त्रासदी, एकान्तिक में जादुई उपस्थिति, हर क्षण में जीते घुलते हुए पेशे से अध्यापक भले ही रहे मगर उनकी कवितायें तंत्रिका-तन्त्र में जमें हुए काले और गाढे खून के थक्कों को गलाती और विरेचन करती हैं.आधुनिक कविताकी दुनिया में आर्ट ऑफ स्प्रिचुल हार्मोनी एंड एसेंसटू दि ओरिजिन ऑफ़ रियलिज्मके चरक की तरह उत्तेजक संवेगों से भरी हैं और कठोर समय से लडती ये कविताएँ अपने समय में अनूठी पहचान के साथ हाजिर-नाजिर हैं. रौशनी में धुंध और धुंध में उजाले की तरह साथ-साथ चलती हैं. लाल, पीले, नीले, धूसर, हर्फ-हर्फ प्रकृति की विस्मयकारी अनुभूतियों के संग प्रकृति-रहित दुनिया के बीचो बीच गहरा तालमेल बनाए हुए हैं. हिन्दुस्तानी गाँवों की अद्भुत छवियों को समेटे, प्रकृति की रूमानियत और नई सभ्यता के संकट, चुनौतियों के साथ ये कवितायें अगर किसी मंच की दीवार पर टांग दें तो हर्फ-हर्फ खुद--खुद ढेरों चित्रों में ढले हर ओर फैलने लगते हैं.कविताओं में बसी ये अनुभूति ख़ास किस्म की गंध और रुतबे से भरी है.

इन कविताओं के भीतर बसे सम्प्रेषण और सादगी को आवाज में अगर ढाल दें तो ये अद्भुत राग, लय, छंद, संगीत और सुरों को साध लेती हैं.ब्रह्मांड में किसी नई सृष्टि के सृजन-मन्त्र की तरह बज उठने को बेताब हो उठते हैं राग-रंग. इन कविताओं का नशा और फितरत ही ऐसी है कि इंसानी बज्म में घुसते, घुलते तमाम दुनियाओं की गंध, रस, स्पर्श, और मोहक अनुगूँज आकृतियाँ भीतर-बाहर चलती नजर जायेंगी. जिनका वास्ता हमसे होकरनियोप्लास्तिसिज्मको अपने भीतर समेटे रहती हैं. इस बात का कभी हमें एहसास तक नहीं होता. ये ऐसी कलात्मकता और हकीकत को साधे हुए हैं जो रुसी कवि माय्कोव्य्सकी की तरह कविता में नये वृत्तचित्र, त्रिभुज, गुणात्मक संरचनाएं, विरोधी रसों के अद्भुत् संयोजन से भरी हैं. ये कवितायें यकीन दिलाती हैं कि वे सिर्फ हमारे लिए नहीं जीती.‘अपनेऔरपरसे बाहर निकलकर हर लम्हा रहस्यमय रूप धरे- नए सृजन-संसार कायनात के कण-कण में प्रवाहित हो रही हैं. अणु-परमाणुओं की टकराहट और संतुलन से धरती और ब्रह्मांड की गहरी सतहों को छू रही हैं. जगतकी भीतरी सतहों में सूक्ष्म सम्वेदना तक का सफर करती कवितायें ऊर्जा और उम्मीद बांधे समूचे तन्त्र को जीवनराग से भर रही हैं.

ये कवितायें एक कवि का जीवनराग और त्रासद समय की पीड़ा की पहचान कराने वाले घोषणापत्र सी हैं और इस दुनिया में अपनी सर्वसत्ता के साथ मौजूद है. जो हमारे भीतर बहुत गहरे कहीं हमारी चेतना, हृदय की संवेदना बनकर रहती हैं.सृष्टि की अबूझ जिज्ञासाओं को साधे हुए इंसान और प्रकृति, जीव और पदार्थ, सृष्टि और ब्रह्मांड को एक साथ साधे हैं.यह बिलकुल अलग सा रहस्यमयी प्रभाव है जो सरल और सान्द्र  दीखता तो है मगर उसे समझना आसान नहीं. हर हर्फ के विकीर्णन में एक तनाव, एक सयंम, एक संतुलन बना हुआहै. बारीक बुनावट में अपनी पूरी कसावट को मजबूती से पकड़े हुए.
कवि केदार की रचनाप्रक्रिया के भीतर कविता का व्याकरण समझना उसमें घुसकर देखने पर किसी तरह की अशुद्धि का एक कण भी खोजना बेहद मुश्किल काम है.बहुत साफ़ है कवि के रचना संसार में जीती बसती कविताएँ रूहे-जमीन पर विजातीय द्रव्यों से लड़ती हुई,हर्फ-हर्फ, जहरीले विकारों की कीमियागार सी दुनिया के दुराग्रहों का पूरे जज्बातों और हिम्मत से मुकाबला करती हैं.

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